QAMAR AZAZ SHAYRI ! कमर एजाज एक शायरी फनकार
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QAMAR AZAZ ! कमर एजाज एक शायरी फनकार |
कमर अज़ाज़ साहब के बारे में दो शब्द :-
कमर एजाज साहब का जन्म 9 मार्च 1917 को पंजाब के अमृसर में जन्मे कमर एजाज का असली नाम ओम प्रकाश भंडारी था, लेकिन फुरसत से वो जाने गए कमर के नाम से।
अब ये सोचने पर आपको भी मजबूत कर देगी की आखिर इनका नाम में बदलाव की वजह क्या रही होगी खैर इन के पीछे भी एक कहानी रही होगी !
उर्दू में कविताओं की विद्या में धनी कमर अज़ाज़ साहब :-
काव्य विद्या के धनी कमर साहब में बचपन से ही काव्य जगत के प्रति एक हरफनमौला विचार इनके दिलो और दिमाग में उफान मारता लेकिन घर परिवार वालो ने सायद इनकी प्रतिभा को समझ नहीं पाए और परिवार वालो का कोई समर्थन इनके साथ ना रहा लेकिन कहां जाता हैं कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं और आज इस एजाज के सत्य से को नहीं वाकिफ हैं, महज 7 साल की उम्र से ही ये उर्दू में कविताओं की विद्या में धनी हो चुके थे।
कमर अज़ाज़ साहब की मशहूर शायरी :-
- पत्थरों का नगर है बचा आईना
कर रहा है यही इल्तिजा आईना
- देखकर लोग तुझको संवरने लगे
अपने क़िरदार को तू बना आईना
- घर के आईने की क़द्र घट जाएगी
लाया बाज़ार से गर नया आईना
- भेद चेहरे के खुल जाएंगे देखना
सामने जब तेरे आएगा आईना
- लाख चेहरे को अपने छुपा ले मगर
जानता है तेरी हर अदा आईना
- हर तरफ बेज़मीरों का बाज़ार है
तू किसी को वहां मत दिखा आईना
- आईना तुझसे कहता है एज़ाज ये
पहले ख़ुद देख ले फिर दिखा आईना
- धमकियों से डर न जाए आईना
सच से फिर मुकर न जाए आईना
- पत्थरों का इक हुजूम है उधर,
कह दो कि उधर न जाए आईना
- डर ये है कि झूट सच की जंग में,
टूट कर बिखर न जाए आईना
- सैकड़ों क़यामतें हैं राह में,
कह दो आज घर न जाए आईना
- पै-बा-पै हक़ीक़तों की ज़र्ब को,
सहते सहते मर न जाए आईना
- जब कहेगा सच कहेगा, इसलिए
नज़रों से उतर न जाए आईना
- चाँद शर्मसार होगा बे सबब,
आज बाम पर न जाए आईना
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QAMAR AZAZ ! कमर एजाज एक शायरी फनकार |
QAMAR AZAZ ! कमर एजाज एक शायरी फनकार
शायरी :- हद से ज्यादा भी प्यार मत करना
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QAMAR AZAZ ! कमर एजाज एक शायरी फनकार |
हद से ज्यादा भी प्यार मत करना,
दिल हर एक पे निसार मत करना,
क्या खबर किस जगह पे रुक जाये सास का एतबार मत करना
आईने की नज़र न लग जाये इस तरह से श्रृंगार मत करना
तीर तेरी तरफ ही आएगा तू हवा में शिकार मत करना
डूब जाने का जिसमे खतरा है ऐसे दरिया को पार मत करना
देख तौबा का दर खुला है अभी कल का तू इंतज़ार मत करना
मुझको खंज़र ने ये कहाँ है एजाज़ तू अँधेरे में वार मत करना
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